Manav Kaul Movie: ‘बारामूला’ एक ऐसी फिल्म है जो आपको अपनी सीटों से बांधे रखने का वादा करती है। मानव कौल ने एक बार फिर अपने अभिनय का लोहा मनवाया है, जिसमें वह एक पुलिस वाले की भूमिका में हैं जो एक मुश्किल केस और अपने परिवार पर मंडरा रहे अलौकिक खतरे के बीच फंसा है। फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष इसका माहौल और कश्मीर की खूबसूरती है, जो कहानी में एक खौफनाक किरदार की तरह काम करती है। निर्देशक आदित्य सुहास जंभाले ने एक ऐसी दुनिया रची है जो असली और डरावनी दोनों लगती है। हालांकि, फिल्म की पटकथा थोड़ी कमजोर रह जाती है और यह उतने रोमांचक पल नहीं दे पाती जितनी इससे उम्मीद की जाती है। इस रिव्यू में जानें कि मानव कौल के अभिनय के अलावा और कौन सी 3 वजहें हैं जो इस फिल्म को खास बनाती हैं।

Baramulla Review: मानव कौल की फिल्म में डर और रहस्य का कॉकटेल, पर क्या रोंगटे खड़े कर पाती है यह कहानी?
नई दिल्ली: बॉलीवुड में हॉरर और थ्रिलर का जॉनर हमेशा से दर्शकों को अपनी ओर खींचता रहा है। इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ा है- ‘बारामूला’। मानव कौल और भाषा सुंबली अभिनीत यह फिल्म कश्मीर की बर्फ से ढकी, रहस्यमयी और खूबसूरत वादियों में सेट है। फिल्म एक पुलिसवाले की कहानी है जो बच्चों के गायब होने की गुत्थी सुलझाने निकला है, लेकिन जल्द ही उसके अपने घर में अलौकिक शक्तियों का साया मंडराने लगता है। फिल्म का माहौल और लोकेशन इसकी सबसे बड़ी यूएसपी है, लेकिन क्या कहानी और डर के मामले में भी यह खरी उतरती है? आइए करते हैं इसका पूरा विश्लेषण।
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क्या है ‘बारामूला’ की कहानी?
फिल्म की कहानी कश्मीर के बारामूला शहर में शुरू होती है। एक पूर्व विधायक (मीर सरवर) का बेटा शोएब अंसारी अचानक गायब हो जाता है। शक एक जादूगर जफर मंसूर पर जाता है, जो एक मैजिक शो के ठीक बाद शहर से लापता हो जाता है। जब लोकल पुलिस इस केस को सुलझाने में नाकाम रहती है, तो डीएसपी रिदवान सय्यद (मानव कौल) को इस केस की कमान सौंपी जाती है। लेकिन रिदवान के आने के बाद मामला और भी गंभीर हो जाता है, जब स्कूल से और भी बच्चे गायब होने लगते हैं। पूरे शहर में दहशत का माहौल है।
एक पुलिसवाला, दोहरी मुसीबत
एक तरफ जहां रिदवान इस मुश्किल केस में उलझा है, वहीं दूसरी ओर उसके अपने घर में अजीबोगरीब और डरावनी घटनाएं शुरू हो जाती हैं। उसकी पत्नी गुलनार (भाषा सुंबली) और बच्चे नूरी व अयान घर में किसी अनदेखी शक्ति को महसूस करते हैं। कभी घर में कुत्ते की गंध आती है तो कभी बच्चे एक ऐसे दोस्त के साथ खेलते हैं जो किसी को दिखाई नहीं देता। जब उन्हें पता चलता है कि उनका नया घर पहले एक हिंदू परिवार का था, तो कहानी एक काले और अलौकिक मोड़ पर पहुंच जाती है।
दो हिस्सों में बंटी कहानी, दर्शकों का इम्तिहान
फिल्म की सबसे बड़ी खासियत और शायद सबसे बड़ी कमजोरी इसकी कहानी कहने का तरीका है। डायरेक्टर आदित्य सुहास जंभाले ने कहानी को दो अलग-अलग ट्रैक्स पर चलाया है। पहला ट्रैक डीएसपी रिदवान की पुलिस जांच का है, जो पूरी तरह से प्रोसीजरल और रियलिस्टिक लगता है। दूसरा ट्रैक उसकी पत्नी और बच्चों के साथ घर में हो रही पैरानॉर्मल घटनाओं का है, जो हॉरर और टेंशन से भरपूर है। दोनों ही ट्रैक अपने आप में दिलचस्प हैं, लेकिन शुरुआती हिस्से में ये एक-दूसरे से बिल्कुल कटे हुए लगते हैं, जिससे देखने का अनुभव थोड़ा uneven हो जाता है।

मानव कौल का संयमित और दमदार अभिनय
परफॉर्मेंस के मामले में ‘बारामूला’ निराश नहीं करती। मानव कौल ने एक बार फिर साबित किया है कि वह कितने मंझे हुए कलाकार हैं। उन्होंने डीएसपी रिदवान के किरदार को बड़ी ही ईमानदारी और संयम के साथ निभाया है। उनके चेहरे पर एक पुलिस अफसर की सख्ती और एक पिता की बेबसी, दोनों ही भाव बखूबी दिखाई देते हैं। हालांकि, उनका किरदार और ज्यादा इमोशनल डेप्थ की मांग करता था, जो शायद कमजोर स्क्रिप्ट की वजह से पूरी नहीं हो सकी।
सपोर्टिंग कास्ट ने भी छोड़ी अपनी छाप
रिदवान की पत्नी गुलनार के किरदार में भाषा सुंबली ने बेहतरीन काम किया है। उन्होंने डर और हिम्मत के बीच संतुलन साधती एक मां और पत्नी के रोल को जीवंत कर दिया है। लेकिन जो कलाकार सबसे ज्यादा ध्यान खींचती है, वह है नूरी का किरदार निभाने वाली युवा अरिस्टा मेहता। एक बच्ची के ट्रॉमा और डर को उन्होंने जिस प्रामाणिकता के साथ पर्दे पर उतारा है, वह काबिले-तारीफ है।
फिल्म का असली हीरो – कश्मीर का माहौल
इस फिल्म का असली सितारा इसकी सेटिंग है। कश्मीर की बर्फ से ढकी वादियां, लगातार छाया रहने वाला अंधेरा और उदासी, और चारों तरफ पसरा सन्नाटा… यह सब मिलकर एक ऐसा माहौल बनाते हैं जो अपने आप में डरावना है। डायरेक्टर आदित्य सुहास जंभाले ने एक ऐसी दुनिया रची है जो असली भी लगती है और बेचैन करने वाली भी। सिनेमैटोग्राफी शानदार है और हर एक फ्रेम एक पेंटिंग की तरह लगता है। यह माहौल फिल्म के हर डर और हर रहस्य को और गहरा कर देता है।
डर और थ्रिल का कॉकटेल, लेकिन कितना असरदार?
‘बारामूला’ हॉरर और थ्रिलर के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती है। फिल्म में अलौकिक घटनाएं हैं, लेकिन यह सीधे-सीधे आपको डराने (Jump Scares) वाले फॉर्मूले पर नहीं चलती। यह धीरे-धीरे एक रहस्य बुनती है और डर का माहौल बनाती है। हालांकि, फिल्म बहुत ज्यादा ‘होल्ड बैक’ करती है। यह दर्शकों के सामने पूरी तरह से पत्ते नहीं खोलती, जिससे कई सवाल अधूरे रह जाते हैं। डर पैदा करने की कोशिश तो है, पर यह आपके रोंगटे खड़े करने में नाकाम रहती है।
क्यों रह जाती है एक कसक?
फिल्म की सबसे बड़ी कमी इसकी पटकथा है। यह महत्वाकांक्षी है, लेकिन उतनी गहरी नहीं है जितनी हो सकती थी। अगर कहानी के दोनों ट्रैक्स को शुरुआत से ही कुछ हिंट्स या क्लू के साथ जोड़ा जाता, तो यह रहस्य और भी ज्यादा आकर्षक हो सकता था। फिल्म आपको सोचने पर मजबूर करती है, लेकिन उन डॉट्स को कनेक्ट करने के लिए छोड़ देती है जो कभी पूरी तरह से सामने आते ही नहीं।
क्लाइमेक्स: क्या सुलझती है अंत में गुत्थी?
फिल्म के क्लाइमेक्स में आकर कहानी के दोनों बिखरे हुए धागे आखिरकार एक साथ जुड़ते हैं। अंत तार्किक और संतोषजनक है, लेकिन यह एक उदास और भारी मन के साथ आपको छोड़ जाता है। शिल्पा राव द्वारा गाया गया एक गाना फिल्म के इस उदास अंत को और भी प्रभावी बना देता है। अंत में सब कुछ समझ आ जाता है, लेकिन तब तक फिल्म दर्शकों के धैर्य की काफी परीक्षा ले चुकी होती है।

देखें या न देखें? हमारा फैसला
‘बारामूला’ एक ऐसी फिल्म है जिसकी तारीफ भी की जा सकती है और आलोचना भी। अगर आप एक शानदार माहौल, बेहतरीन एक्टिंग और एक धीमी गति से खुलने वाले रहस्य को पसंद करते हैं, तो यह फिल्म आपको पसंद आ सकती है। मानव कौल के फैंस के लिए यह एक ट्रीट है। लेकिन अगर आप रोंगटे खड़े कर देने वाले हॉरर या तेज-तर्रार थ्रिलर की उम्मीद कर रहे हैं, तो आपको निराशा हाथ लग सकती है। ‘बारामूला’ आपको ठंडक का एहसास तो कराती है, लेकिन आपकी हड्डियों तक को जमा देने में नाकाम रहती है। यह एक अच्छी कोशिश है, जो अपनी महत्वाकांक्षाओं से थोड़ी पीछे रह जाती है।
| विषय | विवरण |
|---|---|
| फिल्म का नाम | बारामूला (Baramulla) |
| मुख्य कलाकार | मानव कौल, भाषा सुंबली, अरिस्टा मेहता, मीर सरवर |
| डायरेक्टर | आदित्य सुहास जंभाले |
| जॉनर | हॉरर, थ्रिलर, मिस्ट्री |
| कहानी का सार | कश्मीर में एक पुलिस अफसर बच्चों के गायब होने के मामले की जांच करता है, जबकि उसके अपने परिवार को अलौकिक घटनाओं का सामना करना पड़ता है। |
| क्या अच्छा है? | दमदार माहौल, कश्मीर की शानदार सिनेमैटोग्राफी, मानव कौल और बाकी कलाकारों का अभिनय। |
| क्या कमजोर है? | धीमी और दो हिस्सों में बंटी हुई पटकथा, हॉरर के तत्वों का कम होना, कहानी में गहराई की कमी। |
| संगीत | अंत में शिल्पा राव का गाया एक प्रभावी गाना है। |
| फाइनल वर्डिक्ट | एक औसत थ्रिलर जो अपने माहौल और अभिनय के लिए देखी जा सकती है, लेकिन हॉरर और रोमांच की उम्मीद रखने वालों को निराश कर सकती है। |