NDA Victory: बिहार के चुनावी दंगल में एनडीए (NDA) एक बड़ी और निर्णायक जीत की ओर बढ़ रहा है। मंगलवार को मतदान खत्म होने के बाद आए लगभग सभी एग्जिट पोल ने JDU-BJP गठबंधन को 145 से ज्यादा सीटों का अनुमान दिया है। इस बड़ी जीत के पीछे नीतीश कुमार का चेहरा, जातीय समीकरणों का साथ, और बीजेपी के साथ मजबूत गठबंधन जैसे 5 बड़े कारण माने जा रहे हैं। वहीं, तेजस्वी यादव का ‘युवा जोश’ इस बार फीका पड़ता दिखा और महागठबंधन 100 सीटों के आंकड़े से भी दूर रह गया। प्रशांत किशोर की पार्टी भी कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई। अब सभी की निगाहें 14 नवंबर को आने वाले अंतिम चुनाव परिणामों पर टिकी हैं।

नई दिल्ली: बिहार के चुनावी महासंग्राम का पटाक्षेप हो गया है और अब सभी की निगाहें टिकी हैं 14 नवंबर को आने वाले अंतिम नतीजों पर। लेकिन उससे पहले, मंगलवार शाम को जैसे ही दूसरे और अंतिम चरण का मतदान समाप्त हुआ, एग्जिट पोल्स ने बिहार की अगली सरकार की तस्वीर लगभग साफ कर दी है। लगभग सभी प्रतिष्ठित समाचार चैनलों और सर्वे एजेंसियों के एग्जिट पोल एक स्वर में बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए (NDA) की बंपर वापसी का ऐलान कर रहे हैं। आंकड़े इतने एकतरफा हैं कि विपक्ष के खेमे में मायूसी और सन्नाटा पसर गया है, जबकि एनडीए के कार्यकर्ता जश्न की तैयारी में जुट गए हैं।
NDA Victory: क्या कहते हैं एग्जिट पोल के आंकड़े?
बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर हुए चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल्स के ‘पोल ऑफ पोल्स’ (सभी एग्जिट पोल का औसत) पर नजर डालें तो एनडीए को 145 से 160 सीटों के बीच प्रचंड बहुमत मिलता दिख रहा है। सरकार बनाने के लिए 122 सीटों का जादुई आंकड़ा चाहिए और एनडीए इस आंकड़े को बहुत आराम से पार करता नजर आ रहा है। वहीं, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन के लिए ये एग्जिट पोल किसी बुरे सपने से कम नहीं हैं। महागठबंधन 70 से 90 सीटों के बीच सिमटता दिख रहा है। यानी, विपक्ष सत्ता की रेस में कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है।
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NDA की बंपर जीत के पीछे 5 बड़े कारण
आखिर ऐसा क्या हुआ कि एनडीए को इतनी बड़ी जीत मिलती दिख रही है? राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस संभावित जीत के पीछे कई बड़े कारण हैं। सबसे पहला और बड़ा कारण है नीतीश कुमार का चेहरा, जिन पर बिहार की जनता ने एक बार फिर भरोसा जताया है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा और ‘डबल इंजन’ सरकार का नारा भी खूब चला। बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों का सही तालमेल और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की मेहनत रंग लाती दिख रही है। कई सर्वे यह भी बता रहे हैं कि ओबीसी और अनुसूचित जाति के वोटों का एक बड़ा हिस्सा एनडीए के पक्ष में गया है, जिसने महागठबंधन के सारे समीकरण बिगाड़ दिए।
महागठबंधन क्यों हुआ चारों खाने चित?
2020 के चुनाव में तेजस्वी यादव ने एनडीए को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन 2025 में उनका जादू फीका पड़ गया। एग्जिट पोल्स के अनुसार, इस बार तेजस्वी यादव युवाओं को उस तरह से आकर्षित नहीं कर पाए जैसा उन्होंने पिछली बार किया था। कांग्रेस का कमजोर प्रदर्शन भी महागठबंधन पर भारी पड़ा है। कांग्रेस अपने हिस्से की कई सीटें हारती हुई दिख रही है, जिसका सीधा नुकसान गठबंधन को हुआ। साथ ही, एनडीए के मजबूत सामाजिक और जातीय समीकरण को भेदने में विपक्ष पूरी तरह नाकाम रहा।
युवाओं पर नहीं चला तेजस्वी का ‘युवा जोश’
इस चुनाव में तेजस्वी यादव ने ‘युवा जोश’ और रोजगार के मुद्दे को खूब उछाला, लेकिन एग्जिट पोल बताते हैं कि उनकी यह रणनीति काम नहीं आई। 2020 के चुनाव में तेजस्वी एक मजबूत नेता के तौर पर उभरे थे, लेकिन इस बार वह एनडीए के अनुभवी नेताओं के सामने कमजोर पड़ गए। उनके भाषणों में वह धार नजर नहीं आई और वह जनता के बीच एक विश्वसनीय विकल्प के तौर पर खुद को स्थापित नहीं कर पाए। तेजस्वी ने हालांकि इन एग्जिट पोल्स को खारिज कर दिया है, लेकिन उनकी पार्टी के खेमे में निराशा साफ देखी जा सकती है।
प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ का सूपड़ा साफ
इस चुनाव में जिस एक चेहरे पर सभी की निगाहें थीं, वह थे प्रशांत किशोर और उनकी ‘जन सुराज’ पार्टी। चुनावी पंडित यह देखने को उत्सुक थे कि क्या पीके का जमीनी अभियान वोटों में तब्दील हो पाएगा। लेकिन, एग्जिट पोल्स के नतीजों ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। लगभग सभी सर्वे जन सुराज पार्टी को 0 से 5 सीटों के बीच ही दिखा रहे हैं। कई बड़े पोल ने तो उन्हें एक भी सीट नहीं दी है। यह प्रशांत किशोर के राजनीतिक भविष्य के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। उनका ‘व्यवस्था परिवर्तन’ का नारा जनता को लुभाने में नाकाम रहा।
क्या कहते हैं अलग-अलग एजेंसियों के सर्वे?
विभिन्न सर्वे एजेंसियों के आंकड़े भी एक ही कहानी बयां कर रहे हैं:
- News18 Mega Exit Poll: एनडीए को 145 सीटें, महागठबंधन को 90 सीटें।
- Matrize: एनडीए को 147-167 सीटें, महागठबंधन को 70-90 सीटें।
- P-Marq: एनडीए को 142-162 सीटें, महागठबंधन को 80-98 सीटें।
- Chanakya Strategies: एनडीए को 130-138 सीटें, महागठबंधन को 100-108 सीटें।
- TIF Research: एनडीए को 145-163 सीटें, महागठबंधन को 76-95 सीटें।
2020 के मुकाबले कितना बदला बिहार का मिजाज?
2020 के विधानसभा चुनाव में मुकाबला बेहद कांटे का था। एनडीए ने 125 सीटों के साथ सरकार बनाई थी, जो बहुमत से सिर्फ 3 सीटें ज्यादा थीं। उस चुनाव में तेजस्वी यादव की आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। लेकिन 2025 के एग्जिट पोल बिल्कुल अलग कहानी बयां कर रहे हैं। इस बार एनडीए को एकतरफा और बड़ी जीत मिलती दिख रही है, जो 2020 के मुकाबले कहीं ज्यादा आरामदायक है। यह दिखाता है कि पिछले 5 सालों में बिहार की जनता का मिजाज एनडीए के पक्ष में और मजबूत हुआ है।
‘डबल इंजन’ के मॉडल पर जनता की मुहर!
अगर ये एग्जिट पोल हकीकत में बदलते हैं, तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के डबल इंजन सरकार के मॉडल पर जनता की मुहर होगी। यह जीत एनडीए के लिए 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले एक बड़ा बूस्ट होगी। वहीं, महागठबंधन के लिए यह एक बड़ा झटका होगा और उन्हें अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने पर मजबूर होना पड़ेगा। यह नतीजे विपक्ष की एकता पर भी गंभीर सवाल खड़े करेंगे।
विपक्ष ने उठाए एग्जिट पोल पर सवाल
जैसा कि अक्सर होता है, एग्जिट पोल के नतीजे आने के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने इन सभी एग्जिट पोल्स को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने दावा किया है कि ये सर्वे मतदान के दौरान जारी किए गए और ये एनडीए के पक्ष में एक माहौल बनाने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि असली नतीजे 14 नवंबर को आएंगे और महागठबंधन की ही सरकार बनेगी। हालांकि, उनके दावों में कितना दम है, यह तो नतीजों के दिन ही पता चलेगा।
14 नवंबर को आएगा अंतिम फैसला
हालांकि एग्जिट पोल एक स्पष्ट तस्वीर पेश कर रहे हैं, लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि ये सिर्फ अनुमान हैं। कई बार एग्जिट पोल गलत भी साबित हुए हैं। बिहार का असली किंग कौन होगा, इसका अंतिम फैसला तो 14 नवंबर को ही होगा, जब चुनाव आयोग द्वारा वोटों की गिनती की जाएगी। तब तक, बिहार की सियासत में अटकलों का बाजार गर्म है और सभी दलों के नेता अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं।